नक्षत्रों की कहानी

नक्षत्रों की कहानी

नक्षत्रों की कहानी

मानव सभ्यता की शुरुआत के भी लाखों साल पहले से आदिमानव को अफ़्रीका महाद्वीप के पूर्वी तट से लेकर पृथ्वी के सुदूर इलाक़ों में मानव के फैलने और बसाने के लिए तारों ने हाथ पकड़ कर रह दिखाई थी। अनजान इलाक़ों में राह खोजने के लिए सूरज और तारों का इस्तेमाल तो मनुष्यों के अलावा पशु भी करते हैं इसके प्रमाण जीवों के व्यवहार का अध्यन करने वाले वैज्ञानिकों को मिले हैं। दिशा निर्धारण के लिए मधुमक्खी भी सूरज का इस्तेमाल करतीं हैं। प्लेनेटेरियम के अंदर प्रयोग करने से पक्षियों को तारामंडलों की पहचान करने की क्षमता का पता चलता है। तो फिर निश्चित ही मनुष्य की पुरखा प्रजातियाँ जिन्हें हम होमिनिड्स कहते हैं चंद तारों की ज़रूरी जानकारी ज़रूर रखतीं ही होंगी। सबसे पुराने गुफा चित्रों में कई जगह तारों और सूर्य चंद्र की आकृतियाँ उकेरी हुई मिलतीं हैं। फ़्रांस की लास्कु गुफा में एक जगह एक कॉमेट की टक्कर से हुए विनाश का 15,200 साल पुराना चित्र दिखता है। वहीं पर दूसरी जगह एक बैल के सिर के पास वृषभ राशि के तारों का चित्रण है। तीन लाख साल पहले जब आधुनिक मानव की प्रजाति होमो सेपिएंस की शुरुआत हुई थी थी तब से अब तक अब तक कम से कम लगभग बारह बार आज का ध्रुव तारा ‘ध्रुव’ तारा बनता और बदलता रहा है पर उसकी आने वाली पीढ़ियां हमेशा ही आकाश के नक्षत्रों का नक़्शा बना कर नये नये इलाक़ों में अपनी राह खोजी होगी और जमीं को नाप कर उसके नक़्शे भी बनाये होंगे।

खेती के अविष्कार और शहरी सभ्यता के जन्म के दौर में मौसमों की आवाजाही और साल महीनों का हिसाब रखने के लिए आकाश में मौजूद प्राकृतिक घड़ियों सूरज, चाँद, गृहों और तारों की चाल को समझना पड़ा था। भारत में हड़प्पन सभ्यता में के अवशेषों में एक सील में सप्तर्षि के तारों का अंकन किया हुआ लगता है। वैदिक साहित्य में काल गणना का काफ़ी महत्व है। हमारे सूर्य के मार्ग की 12 राशियों के साथ साथ चंद्रमा की कक्षा में पड़ने वाले तारों के आधार पर 27 नक्षत्रों की कल्पना की। हर दिन चंद्रमा जितना आगे बढ़ता उसकी राह में पड़ने वाले चमकीले तारे या तारों के समूह के नाम पर उसे एक नक्षत्र का नाम दिया। इस तरह चलते हुए ठीक ठीक 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11.6 सेकेंड में चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरा करता हुआ पिछले वाले नक्षत्र के पास ठीक पिछली जगह पर पहुँच जाता है। इसलिए चंद्रमा के पथ को ठीक 13 डिग्री 20 मिनट के 27 हिस्सों बाँटा और उन्हें 27 नक्षत्रों का नाम दिया। पर चूँकि इन 27.326 दिनों में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में औसतन 26.933 डिग्री आगे बढ़ जाती है सूर्य इतना ही पश्चिम से पूर्व की और आगे बढ़ जाता है। इसके चलते चंद्रमा की कलाओं के चक्र जिससे हमारा महीना चलता है, के पूरे होने में औसतन 2.21 दिन और लगेंगे इसलिए हर महीने का पूरा चाँद पिछली बार जिन तारों के के पास था वहाँ से खिसक कर दो और चौथाई आगे के नक्षत्र और के पास चला जाता है।

मतलब अगर नये साल के पहले महीने चैत में पूर्ण चंद्र चित्रा अर्थात् वर्गों के स्पाइकाके साथ था अगले महीने का पूर्ण चंद्र विशाखा नक्षत्र के तारों के साथ होगा। इस प्रकार भारत में हर महीने का नाम उन तारों के नाम पर पड़ा जो पूर्ण चंद्र के साथ होते हैं। अर्थात् अगर एक पूर्णिमा को चंद्रमा चित्रा नक्षत्र जो कन्या राशि का सबसे चमकीला तारा है में है तो अगली पूर्णिमा को वह विशाखा नक्षत्र में होगा। इसी आधार महीनों के नाम चैत और वैशाख इत्यादि पड़े हैं। इन नक्षत्रों के नामों का उल्लेख वेदों में मिलता है। जिसे अश्विनी नक्षत्र अश्विनी कुमारों के नाम पर है जो देवों के चिकित्सक हैं। इनका सिर घोड़े का है। पर शिवपुराण में इन नक्षत्रों को दक्ष प्रजापति की पुत्रियों से जोड़ा गया है। दक्ष प्रजापति अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर देते हैं। चंद्रमा अपनी एक पत्नी के पास एक दिन बिताता हुए अपने परिक्रमा पथ पर चलता है। चंद्रमा को रोहिणी से अधिक प्यार हो जाता है और उसके पास ज़्यादा रहता है। इससे दक्ष नाराज़ हो कर चंद्रमाँ को क्षय होने का श्राप देते हैं। बाद में अन्य देवताओं के अनुरोध करने पर चंद्रमा को एक बार क्षय से मृत्यु होने पर भी पुनर्जीवित हो कर फिर पूर्ण होने का वरदान भी देते हैं।

ये नक्षत्र इस प्रकार से है, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अभिजीत।

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